ना परवाही की आदत अब कुछ इस क़दर है मुझ में,
कि ख़ून का रंग भी सफ़ेद नज़र आता है.
दरख्तों के शोर -गुल अब लगते हैं ऐसे,
कि हर एक घोंसले में बाज़ नज़र आता है.
राह के लोग अब होते नहीं अंजान,
कि हर एक चेहरें में अपना माज़ी नज़र आता है.
तुमने आँसू बेकार ही जाया किये होंगे,
कि हर एक दरिया में समंदर नज़र आता है.
ना परवाही की आदत अब कुछ इस क़दर हैं मुझ में,
कि ख़ून का रंग भी सफ़ेद नज़र आता है.
bahut khoob
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Kya baat hai! Wah! 👌👌👌
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Bht khoob
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Kya baat hain!!
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अर्थ पूर्ण !!
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Beautifully expressed …..
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Bahut khoob
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