ख़त्म होती तो कहानी कुछ और होती,
तेरी मेरी ज़ुबानी कुछ और होती.
ऐसी तो ताज़ियत ज़माने की ना थी,
ख़ुदा का वास्ता होता तो कुछ और होती.
खुशियाँ जहाँ से चुरा लाता मैं,
बाज़ार में बिकती, तो कुछ और होती.
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ताज़ियत – lamenting
Unwind….
ख़त्म होती तो कहानी कुछ और होती,
तेरी मेरी ज़ुबानी कुछ और होती.
ऐसी तो ताज़ियत ज़माने की ना थी,
ख़ुदा का वास्ता होता तो कुछ और होती.
खुशियाँ जहाँ से चुरा लाता मैं,
बाज़ार में बिकती, तो कुछ और होती.
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ताज़ियत – lamenting
Wah!! Superbly written!
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Bahut achha 👏👏👏
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Kya khoob likha hain!!!
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अति उत्तम !!
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